अब से दो बरस पहले आठ अगस्त 2008 को अचानक ही बरसात ने आकर आधे से ज्यादा गाँव को तहस-नहस कर दिया. उस वक्त का मंजर देखने लायक था. घरों की छतें ही गिर जाये तो आसमान ही सर ढकने के लिए छत होती है. यही दृश्य यहाँ देखने को मिला. उस समय के कुछ दृश्य www.parlika.com के फोटोग्राफर विक्रम गोदारा और निर्माता अजय परलीका ने इनको अपने कैमरे में कैद कर लिया. आप भी देखिये-
परलीका में बाढ़ के पानी से घिरा बालिका विद्यालय
धर्मपाल के रहने का सहारा एक कच्चा सा मकान था, बरसात ने उसे भी तहस-नहस कर दिया. कई महीनों तक धर्मपाल ने इसी चादर के नीचे अपना आशियाना बनाये रखा.
गिर गया वर्षा में देखो कोठा नीरे का,
क्या खाकर जियेगा अब ऊंट फकीरे का।
-किसान
हालात इस कदर बेकाबू हो गए थे कि गाँव से पानी बरमों की सहायता से बाहर खेतों में निकला गया। लगभग चार दिनों के बाद ग्रामीणों तथा प्रशासन के सहयोग से पानी निकला जा सका.
धर्मपाल के रहने का सहारा एक कच्चा सा मकान था, बरसात ने उसे भी तहस-नहस कर दिया. कई महीनों तक धर्मपाल ने इसी चादर के नीचे अपना आशियाना बनाये रखा.
गिर गया वर्षा में देखो कोठा नीरे का,
क्या खाकर जियेगा अब ऊंट फकीरे का।
-किसान
हालात इस कदर बेकाबू हो गए थे कि गाँव से पानी बरमों की सहायता से बाहर खेतों में निकला गया। लगभग चार दिनों के बाद ग्रामीणों तथा प्रशासन के सहयोग से पानी निकला जा सका.