परलीका के फोटो- photo gallery

अब से दो बरस पहले आठ अगस्त 2008 को अचानक ही बरसात ने आकर आधे से ज्यादा गाँव को तहस-नहस कर दिया. उस वक्त का मंजर देखने लायक था. घरों की छतें ही गिर जाये तो आसमान ही सर ढकने के लिए छत होती है. यही दृश्य यहाँ देखने को मिला. उस समय के कुछ दृश्य www.parlika.com के फोटोग्राफर विक्रम गोदारा और निर्माता अजय परलीका ने इनको अपने कैमरे में कैद कर लिया. आप भी देखिये-
परलीका में बाढ़ के पानी से घिरा बालिका विद्यालय
धर्मपाल के रहने का सहारा एक कच्चा सा मकान था, बरसात ने उसे भी तहस-नहस कर दिया. कई महीनों तक धर्मपाल ने इसी चादर के नीचे अपना आशियाना बनाये रखा.
गिर गया वर्षा में देखो कोठा नीरे का,
क्या खाकर जियेगा अब ऊंट फकीरे का।
-किसान
हालात इस कदर बेकाबू हो गए थे कि गाँव से पानी बरमों की सहायता से बाहर खेतों में निकला गया। लगभग चार दिनों के बाद ग्रामीणों तथा प्रशासन के सहयोग से पानी निकला जा सका.

सहयोगी- Helper


अजय परलीका
निर्माता- www.parlika.com


डॉ सत्यनारायण सोनी
निदेशक- www.parlika.com

विक्रम गोदारा
फोटोग्राफर- www.parlika.com

प्रवाशी परलीका वासी- dr. shyam jangid


About Dr. Shyam Jangid

Name: श्याम जांगिड
Address: परलीका
About Head:
मध्यप्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर में फोरेंसिक साइंस विषय में एमएससी की राजस्थान राज्य की एकमात्र सीट के कोटे पर वरीयतानुसार वर्ष 2007 में श्याम का प्रवेश हुआ था। श्याम ने इस वर्ष विश्वविद्यालय के सैकण्ड टॉपर विद्यार्थी के रूप में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की है। एमएससी के दौरान ही इस युवक ने दिसम्बर 2008 में आयोजित यूजीसी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी उत्तीर्ण की। पच्चीस वर्षीय श्याम इन दिनों मध्यप्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर में फोरेंसिक साइंस विषय के प्रोफ़ेसर पद पर कार्यरत है तथा यहीं से फोरेंसिक विषय पर शोध कर रहे हैं.
Phone Number: 0942-443-8034 (Sagar, M.P.)
ZIP Code: 335504

वर्तमान सरपंच- village council

About Village Council Head

Name: अनिल कुमार लाटा
Address: परलीका
About Head:
गाँव के मौजूदा सरपंच अनिल कुमार लाटा युवा तथा नौजवान हैं। गाँव के सबसे कम उम्र के पहले युवा सरपंच हैं। इनके दादाजी स्व श्री सोहनलाल जी लम्बे समय तक गाँव के सरपंच रह चुके हैं।
Phone Number: 941-395-0525
ZIP Code: 335504

चौपाल- chaupal

हमारे गाँव की चौपाल कुछ अलग ही तरीके से मंडती है.यहाँ हर घर के आगे चुन्तरी कोई न कोई बुजुर्ग बैठा हुआ हथाई करते हुए मिल जायेगा. कई बुजुर्ग कहानियाँ किस्से सुनाकर भलाई का सन्देश प्रसारित करते हैं तो कई हुक्का भरकर बैठक जमाते हैं. नीम के नीचे चौपड़, ताश, चर-भर, शतरंज आदि खेलते हुए मिल जायेंगे. गाँव में हर कोई भलाई का कम करता मिल जायेगा. यहाँ हर रोज शाम के समय खाना खाने के बाद बैठक और कहानी किस्सों का दौर शुरू होता है तो रात रात भर चलता रहता है. सुबह से लेकर शाम तक खेती बाड़ी और बैठकों के बीच गाँव की चौपाल चलती रहती है.

जिंदगी में रस घोल दिया शहद ने- jindgi me shahad ghol diya shahad ne

जिंदगी में रस घोल दिया शहद ने

परलीका क्षेत्र में एक दर्जन युवा किसानों ने बनाया आजीविका का साधन

हनुमानगढ़ जिले के परलीका रामगढ़ गांवों के किसानों शिक्षित युवकों का रुझान मधुमक्खी पालन की ओर बढ़ रहा है और इलाके के करीब एक दर्जन नौजवानों ने इसे व्यवसाय के रूप में अपनाया है। युवा किसानों के अनुसार यह व्यवसाय किसानों के लिए काफी लाभप्रद साबित हो रहा है और शहद ने उनकी जिंदगी में रस घोल दिया है।
परलीका में इसकी शुरुआत प्रगतिशील युवा किसान मुखराम सहारण ने की। वे वर्ष 2005 से लगातार शहद उत्पादन कर रहे हैं। शुरू में जानकारियों के अभाव में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा, मगर बाद में कृषि एवं उद्यान विभाग कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा उपलब्ध सुविधाओं तथा प्रशिक्षण से यह व्यवसाय काफी आसानी से होने लगा है। मुखराम से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर इसी गांव के युवक सतवीर बैनीवाल तथा नरेश जांगिड़ ने भी इस व्यवसाय को अपनी आजीविका का साधन बनाया है। समीपवर्ती रामगढ़ ग्राम में युवक मीठूसिंह, सज्जन राहड़, सुरेन्द्र भाम्भू, बगड़ावतसिंह भाम्भू, पवन नैण आदि भी पूर्ण सफलता के साथ शहद उत्पादन कर रहे हैं। इन किसानों के पास मधुमक्खियों के 200 से अधिक बक्से हैं जिन्हें अब तक सरसों के खेतों में रखा गया था और अब हरियाणा के किन्नू-माल्टा बागानों में भेज दिया गया है।
शहद उत्पादकों के अनुसार राज्य सरकार की ओर से दिया जाने वाला अनुदान अन्य सुविधाएं अपर्याप्त हैं तथा राज्य सरकार की उदासीनता से यह व्यवसाय अधिक प्रगति नहीं कर पा रहा है। सरकार अगर पर्याप्त सहयोग करे और सम्बन्धित उपकरण तकनीकों की जानकारी उपलब्ध करवाए तो इस व्यवसाय से शहद के साथ-साथ मोम, रायलजैली, मोनोविष आदि का भी उत्पादन सम्भव है।

हनुमानगढ़ जिले में 150 इकाइयां स्थापित
कृषि विज्ञान केन्द्र संगरिया के विषय विशेषज्ञ (पौध संरक्षण) डॉ. उमेश कुमार का कहना है कि हनुमानगढ़ जिले में मधुमक्खी पालन की लगभग 150 इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। इस क्षेत्र में बीटी कपास के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से कीटनाशकों का प्रयोग 30 प्रतिशत तक कम हुआ है, जिस कारण से इस व्यवसाय को भी अपरोक्ष रूप से अच्छा लाभ हुआ है और शहद का उत्पादन भी बढ़ा है। इस वर्ष शहद के भाव बढऩे से भी उत्पादकों का हौसला बढ़ा है। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों के लिए मधुमक्खी पालन पर प्रतिवर्ष पांच दिवसीय नि:शुल्क प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है। इसी प्रकार उद्यान विभाग प्रति बक्से पर 400 तथा प्रति कॉलोनी 350 रुपयों का अनुदान भी देता है।
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''मधुमक्खी पालन एक लाभप्रद रोजगार है, जिसे खेतीबाड़ी के साथ-साथ सहायक धन्धे के रूप में भी अपनाया जा सकता है। इस व्यवसाय से मधुमक्खी पालक को जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं आस-पास के किसानों की फसलों में मधुमक्खियों द्वारा होने वाले प्राकृतिक परागण से 10 से 20 फीसदी तक अतिरिक्त उत्पादन होता है।''
-सज्जन राहड़, मधुमक्खी पालक, रामगढ़।
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''मैं घणो पढेड़ो कोनी, पण मेरै खातर ओ रोजगार वरदान साबित होयो है। कई नौजवान साथी ईं काम नै मिलगे कर सकै। बेरोजगारी गै जमानै में आज हाथ पर हाथ धरगे बैठणै गी बजाय ईं तरियां गा रोजगार करणा चइयै।''
-मुखराम सहारण, मधुमक्खी पालक, परलीका।
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''मधुमक्खी प्रकृति के अनमोल खजाने को बटोरकर हमें पेश करती है। मधुमक्खी प्रकृति के फूलों से मकरन्द एकत्र कर शहद, रायलजैली, मोम मोनोविष आदि उपलब्ध कराती है जो कि आर्थिक रूप से लाभकारी है तथा स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद है।''
-नरेश जांगिड़, मधुमक्खी पालक, परलीका।

फोटो- 1. परलीका में बक्सों से शहद निकालते हुए मधुमक्खी पालक। 2. डॉ. उमेश कुमार 3. सज्जन राहड़ 4. मुखराम सहारण 5. नरेश जांगिड़।

कामयाबी की कहानी-लालसिंह की जुबानी- Lalsingh Beniwal

कामयाबी की कहानी-लालसिंह की जुबानी
मैं लालसिंह पुत्र श्री भाणाराम बैनीवाळ, गांव-परलीका, तहसील-नोहर, जिला-हनुमानगढ़, राजस्थान का वासी हूं। मेरी उम्र ५४ साल, शिक्षा आठवीं पास। एक बेटी और दो बेटे शादीशुदा। कृषि भूमि ५ हैक्टर। पिछले ३५ सालों से खेतीबाड़ी कर रहा हूं। मेरे पास विरासत में मिली ३ हैक्टर जमीन थी, जिस पर रिहायशी मकान भी है।
मैंने जब अपनी युवावस्था में खेती करनी शुरू की तब कृषि क्षेत्र में रसायन का बड़ा बोलबाला था। कृषि विभाग की सिफारिश से कम रसायन देने पर भी फसल उत्पादन बहुत अच्छा होता था। कीटनाशक मामूली देने पर भी कीड़ों का फसलों पर नियंत्रण हो जाता था। मैं एक या दो स्प्रे किया करता था। फसलों में भूमि-जनित बीमारियां ना के बराबर थी। सन् १९९० के बाद पैदावार में गिरावट आने लगी। कारण था कीटनाशकों और रसायनों का अंधाधुंध इस्तेमाल। कृषि वैज्ञानिक व कृषि विभाग का भी रसायनीकरण हो गया। अगर इन्होंने जैविक खाद की सिफारिश की भी तो पिछले दरवाजे से। विभाग की इस ढील का असर हम पर भी हुआ और फलस्वरूप जमीन में जीवांश की कमी आने से पैदावार भी निरंतर गिरने लगी। हमारे मित्र कीट जहर की भेंट चढ़ गए। यह सब हुआ हमारी नासमझी और कृषि विभाग की गलती के कारण। सन् १९६५ से १९९० के बीच के २५ वर्षों की गलती की सजा आज किसान, कृषि विभाग तथा हमारी सरकार सब भुगत रहे हैं।
मैं कृषि विभाग का सम्पर्क काश्तकार हूं। विभाग को याद आया जैविक खेती का फार्मूला। गोबर की खाद, जीवाणु, बायो खाद। हम किसानों में प्रचार किया गया। इसको मैंने अपनाया सन् १९९४ में। मैंने आईपीएम का प्रशिक्षण लिया। इससे पहले मुझे मित्र व दुश्मन कीड़ों के जीवन चक्र का कोई ज्ञान नहीं था। एक ही तरीका था, जैसा भी कीट है, हमारी फसल का दुश्मन है। प्रशिक्षण के बाद मुझे पता चला कि मेरे खेत में तो मित्र कीटों की फौज खड़ी है, जिनको अनजाने में हमने मार दिया। आईपीएम मतलब समन्वित कीट प्रबंधन से मुझे बड़ा भारी सहयोग मिला। आज मैं आईपीएम आधारित खेती करता हूं। गर्मी में गहरी जुताई, फसल चक्र, समय पर फसल बिजाई, पौधों से पौधों की निश्चित दूरी, जिससे मेरी फसल को हवा, सूर्य की रोशनी अच्छी तरह से मिल सके। फसल पर दुश्मन कीड़ों की मात्रा नुकसान स्तर से ऊपर आने की स्थिति में ही मैं कीटनाशक का इस्तेमाल करता हूं। इससे पहले नीम, मित्र फंफूद, एनपीवी वायरस आदि का इस्तेमाल करता हूं।
सन् १९९७ में कपास की फसल पर अमेरिकन सूंडी ने पूरे उत्तर भारत में कहर मचा रखा था। कपास की फसल को इसने बर्बाद कर दिया। मैंने इन विपरीत परिस्थितियों में भी सघन कपास प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम पुरस्कार जीता। जिसमें मुझे २५ हजार रुपए नगद, स्मृति चिह्न व केन्द्रीय कृषि महानिदेशक श्री राजेन्द्र सिंह परोदा के हाथों से कपास अनुसंधान केन्द्र, नागपुर से वरीयता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया और प्रगतिशील किसान के रूप में चयन किया। मैंने प्रति हैक्टर ३३ क्विंटल कपास निकालकर उस समय रिकॉर्ड स्थापित किया था। इस सम्मान ने मेरे हौसले और बढ़ाए। मेरा सम्पर्क हुआ एक नौजवान कृषि अधिकारी से जो ढूंढ़ रहा था अपने क्षेत्र में कर्मठ किसान और चाहता था कि कृषि में बड़े भारी बदलाव की जरूरत है और इसको मैं अपने किसानों से करवाऊंगा। अधिकारी का नाम है बलवीरसिंह जांगिड़। नोहर में सहायक निदेशक के पद पर। अपने आप में एक कृषि सुपरवाइजर हैं। जिन्होंने मुझे जैविक खेती के लिए प्रेरित किया। मुझे दूसरे राज्यों में फार्म भ्रमण करवाया और बताया कि लालसिंहजी, कृषि क्षेत्र में बहुत कुछ है। थोड़ा-सा बदलाव करने की जरूरत है। इन्होंने मेरे से मेरे खेेत पर केंचुए की एक यूनिट लगवाई, जिससे आसपास के किसानों को दिलवाकर जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया।
२००१-०२ में मेरे यहां भयंकर सूखा पड़ा। फसलों को तो पानी कहां, पीने के पानी की नौबत आ गई। नहर में भी पानी दो महीने से आने लगा। मेरे लड़कों ने शहर जाकर मजदूरी करने का मन बना लिया। मेरी इच्छा नहीं थी कि शहर जाकर मेरे बच्चे मजदूरी करें, पर कर भी क्या सकता था। इस गम्भीर संकट की घड़ी में भी बलवीरसिंह जी मसीहा बनकर आए और मुझे जल प्रबंधन का पाठ पढ़ाया। कहा- डिग्गी बनाओ और बूंद-बूंद व फव्वारा सिंचाई अपनाओ। कुछ जमीन पर आप सब्जी लगाओ, जिसमें मुख्य मिर्च की फसल हो। खेती मिश्रित करो। पशुपालन, मोम, मछली आदि। जिससे रोज आमदनी हो। आज मैं रोजाना नगदी आमदनी ले रहा हूं।
मुझे कई अवार्ड मिले हैं। २८ मार्च २०१० को भी जिला स्तरीय पुरस्कार मुख्यमंत्री व कृषिमंत्री जी से लिया है। ये जो भी सम्मान मुझे मिले हैं, वे मुझे आगे और काम करने को मजबूर करते हैं। मेरे हर वक्त मन में यही रहता है कि तेरे इन बहुमूल्य सम्मानों की इज्जत बनी रहे। मैं अपनी मां भाषा राजस्थानी का सम्मान करता हूं और अपने गांव के स्कूल में राजस्थानी भाषा की दस हजार रुपए की किताबें भी भेंट की हैं। मैं चाहता हूं कि अन्य प्रान्तों की भांति किसानों को सारी जानकारियां उनकी मां भाषा में ही दी जाए। मैं गऊशाला में भी हर साल कुछ न कुछ अपना हिस्सा देता हूं। आज मैं अपने कृषि अधिकारियों के सहयोग से आसपास के किसानों को ट्रेनिंग भी देता हूं, जिससे मेरे किसान भाई लाभ उठा रहे हैं। मेरा कहना है कि कृषि क्षेत्र में आदमी को मेहनत करने की जरूरत है। कामयाबी अपने आप मिलेगी। यह मत देखो कि फलां आदमी फैल हुआ। यह देखो कि लालसिंह कामयाब कैसे हुआ। आदमी की उम्र बहुत कम है। इस थोड़े से समय में अपने देश, गांव, समाज और अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करो, जो कि आने वाली पीढ़ी हमें सम्मान के साथ याद करे।

ख्याली ने किया परलीका डॉट कॉम का लोकार्पण

'गांव की माटी से जुड़ाव जरुरी'

ख्याली ने किया परलीका डॉट कॉम का लोकार्प
परलीका. इंसान कहीं भी चला जाए मगर उसे अपनी माटी की गंध हमेशा आकर्षित करती रहती है। जिस मिट्टी में हमने जन्म लिया है और जिसका अन्न-जल ग्रहण कर बड़े हुए हैं उसके प्रति भी हमारे फर्ज होते हैं और उनको पूरा करने के लिए हर वक्त प्रयत्न करना चाहिए। ये उद्गार गुरुवार को यहां सोनी सदन में प्रसिद्ध हास्य कलाकार तथा सिने अभिनेता ख्याली सहारण ने व्यक्त किए। उन्होंने परलीका गांव की वेबसाइट परलीका डॉट कॉम का लोकार्पण किया और खुशी जाहिर की कि इसके माध्यम से राजस्थानी माटी की महक विश्व स्तर पर प्रसारित होगी।
इस अवसर पर चित्रकार महेंद्र प्रताप शर्मा ने नोहर से ऑनलाइन विडिओ संवाद के माध्यम से ख्याली का स्वागत किया। अजय सोनी ने वेबसाइट का परिचय देते हुए बताया कि इसमें गांव की ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा भौगोलिक स्थितियों की जानकारी को सहेजा गया है तथा प्रतिदिन नवीनतम गतिविधियों को भी इस साइट पर प्रदर्शित किया जाएगा। इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण सोनी, विनोद स्वामी तथा बसंत राजस्थानी भी उपस्थित थे।