जीतमल बेनीवाल - Nai-Taja

छत-पंखे भी करते हैं जनजागरण

परलीका. जन-जागरण के लिए कुछ लोग नए-नए तरीके इजाद कर लेते हैं और उनका यह काम अन्य लोगों के लिए भी प्रेरक बन जाता है। ऐसे ही एक शख्स हैं यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक जीतमल बैनीवाल।
बैनीवाल के घर की छत में टंगे हुए पंखों ने सर्दी के आगमन के साथ भले ही हवा देना बंद कर दिया हो, मगर वे अब पर्यावरण संरक्षण व साक्षरता के प्रचार में जुटकर अपनी क्रियाशीलता प्रदर्शित कर रहे हैं। बैनीवाल ने पंखों की हर ताड़ी पर प्रेरणादायी स्लोगन लिखे हैं जो हर किसी का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं।


राजस्थानी
स्लोगन और मनमोहक चित्रकारी



'आओ आपां पेड़ लगावां', 'आओ आपां पढ़ण चालां', 'बादळ बरसै-धरती सरसै' जैसे स्लोगन आपने राजस्थानी भाषा में लिखे हैं और साथ ही आकर्षक पेंटिंग भी की है जो हर देखने वाले का मन मोह लेती है। बैनीवाल का मानना है कि कोई भी चीज कभी अनुपयोगी नहीं होती, बशर्ते कि उसके सही उपयोग का तरीका हमें आता हो। सेवानिवृत्ति के बाद वे अन्य सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। बचपन से लेकर अब तक हर रोज रात्रि को सोने से पहले डायरी में अपनी दिनचर्या भी वे राजस्थानी भाषा में दर्ज करते आए हैं और रंग-बिरंगी चित्रकारी से सज्जित बड़ी तादाद में डायरियां उनकी आलमारी की शोभा बढ़ा रही हैं।

2 टिप्पणियाँ:

सुनील गज्जाणी ने कहा…

नमस्कार !
नव वर्ष की आप को बहुतबहुत बधाई , श्री जीत मॉल बेनीवाल जी को सादर प्रणाम ! आप का पर्यावरण के प्रति प्रेरणा दायक है , बेहद सुंदर लगे फोटो ,सादर !
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Unknown ने कहा…

पांच-दस साल पहले मैं साक्षरता से जुड़ा रहा था !
मेरा अनुभव यह रहा :
डोळी सा अक्षर बणी
अणपढ बणगा नारा
बीच बाजारां बाजा बाजैं
आधा थारा आधा म्हारा
लुगायो पोथी लेल्यो ये
सागै झांझ मजीरा


डोळी डोळ सुधारलै
आगै आसी नारो
बणगो काम हमारो
पढ्गो सीकर सारो
लुगायो बोलो ये
भारत माता कि जय !

: रामेश्वर बगङिया
ग्राम, पोस्ट = भढाडर

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